उपराष्ट्रपति धनखडः भारतीय सेनायाः शौर्याय विहितं नमनम्
आतंकवादस्य विरुद्धं भारतस्य नीतिः कथिता निर्णायिका जयपुरम्, 15 मईमासः (हि.स.)। उपराष्ट्रपतिना जगदीप धनखटेन भारतसेनायाः अद्वितीयशौर्यं वैश्विकप्रभावं च प्रशस्यते। उपराष्ट्रपतिः श्रीजगदीपधनखटः जयपुरनगरे आयोजिते भैरवसिंहशेखावतस्मारकपुस्तकालयस्य उद्घाट
जयपुर, 15 मई। मंचासीन महानुभाव, मैं जब सामने देखता हूं तो बहुत बड़ा संकट महसूस करता हूं किन-किन का नाम लूं। आचार्यगण को मेरा प्रणाम, आपकी उपस्थिति प्रेरणादायक है। यहाँ जब देखता हूं सबको तो मेरी नजर इतनी पैनी है की राजेंद्र राठौड़ ने अपना स्थान तक बदल लिया। इस मिट्टी के सपूत भारत के माथे का चंदन, देश का गौरव स्वर्गीय श्री भैरों सिंह शेखावत जी। इस अवसर पर उनकी जयंती पर इस पद पर विराजमान व्यक्ति आपके सामने उपस्थित है पर सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मैंने जीवन में कभी कल्पना नहीं की थी कि मुझे इतना गौरव मिलेगा। कि जिस व्यक्ति ने मुझे राजनीति में प्रवेश कराया, मेरा हाथ पकड़ा, मुझे दिशा दी, दर्शन सिखाया और हर मौके पर ऐसा योगदान किया कि मैं उस स्थान पर पहुंच गया जहां वह विराजमान थे। इस पूरे घटनाक्रम के बहुत से लोग साक्षी हैं, मेरे जीवन में दो लोगों का बहुत बड़ा महत्व है। माननीय भैरों सिंह शेखावत जी चौधरी देवीलाल जी। दोनों का मिट्टी से लगाव रहा है, आम आदमी से जुड़ाव रहा है। निष्कलंक उनका जीवन रहा है और दोनों ने अपने राजनीतिक जीवन में एक बहुत बड़ी पौध खड़ी की है, मैं उसका छोटा सा पत्ता हूं।  जयपुर, 15 मई (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारतीय सेना के पराक्रम को सलाम करते हुए कहा कि सेना ने विश्व स्तर पर एक नया मानदंड रखा है। शांति का ध्यान रखते हुए, आतंकवाद पर चोट करना ही लक्ष्य रहा है। यह पहली बार हुआ है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों पर अंतरराष्ट्रीय सीमा के अंदर जाकर उनके सबसे प्रभावी प्रांत में सटीक चोट जिसका प्रमाण विश्व में कोई नहीं मांग रहा है।  पूरी दुनिया ने देखा कि भारत की शक्ति कितनी ताकतवर है, भारत ने दुनिया को बहुत बड़ा संदेश दिया है और वह संदेश है कि एक बड़ा बदलाव आया है–आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेंगे। क्योंकि आतंकवाद किसी देश के लिए ही नहीं दुनिया के लिए चिंता का विषय है। मैं एक और बात बताना चाहता हूं, भारत ने सेवा की ही लड़ाई नहीं लड़ी है प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक बहुत बड़ी कूटनीतिक लड़ाई भी लड़ी है और जीती है - इंडस वॉटर ट्रीटी। देश और दुनिया को संदेश दिया गया, इस पर कोई विचार नहीं होगा जब तक हालात भारत की दृष्टि से सामान्य नहीं होते। इतनी बड़ी पहल का कभी, ना तो सोचा गया था, ना विचार किया गया था, पर इसकी शुरुआत कब हुई ? भारत ने अपनी ताकत दिखाने के लिए राजस्थान की भूमि पर मई के महीने में पोखरण-2 किया–अटल बिहारी वाजपेई देश के प्रधानमंत्री थे, माननीय भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में मुख्यमंत्री थे।   नतीजा यह हुआ कि जब छेड़खानी हुई पहलगाम के अंदर ऐसे मौके पर हुई की दुनिया भारत का लोहा मान रही थी। अर्थव्यवस्था में हमने बहुत बड़ी छलांग लगाई थी आज हम विश्व की चौथी महाशक्ति हैं, तीसरी महाशक्ति बनने जा रहे हैं पर प्रधानमंत्री को जब लगा कि भारत की अस्मिता को ललकारा गया है उन्होंने बिहार की भूमि से दुनिया को संदेश दिया और उस संदेश पर पूरी तरह खरे उतरे। दुनिया ने देखा हमारे आकाश का क्या मतलब है, दुनिया ने देखा ब्रह्मोस का क्या मतलब है। दुनिया ने उस ताकत को पहचान है इसीलिए मैं राजस्थान की भूमि से, वीरों की भूमि से, महाराणा प्रताप की भूमि से, महाराजा सूरजमल की भूमि से उन सब को नमन करता हूं जिन्होंने देश के लिए यह रक्षा का काम किया है हमारी अस्मिता को बचाया है।    भैरों सिंह शेखावत के दिल और दिमाग पर हमेशा आम आदमी रहता था, मैं एक चित्र देख रहा था, बड़ा भावुक चित्र है– माननीय चंद्रशेखर जी हैं, नानाजी देशमुख है, जयप्रकाश नारायण है और भैरों सिंह शेखावत जी उनको अंत्योदय बता रहे हैं। इसकी शुरुआत की उन्होंने राज्यसभा के सभापति के हैसियत से भैरों सिंह शेखावत ने महान व्यक्तित्व ने पारदर्शिता का नया मापदंड हासिल किया। उन्होंने सभी संसद सदस्यों को इस बात के लिए बाध्य भी किया कि वह अपने assets को declare करें–यह शुरुआत माननीय भैरों सिंह जी ने की। यह बहुत बड़ी शुरुआत है। भैरों सिंह जी का परिचय किसी पद से हो ही नहीं सकता चाहे तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री, अनेक बार विधायक रहे हो, और बहुत कम लोगों को ध्यान है कि वह विधानसभा के सदस्य तो रहे पर वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे, मध्य प्रदेश से निर्वाचित हुए थे। जब व्यक्ति संबंधों की बात करता है तो मेरे मन में वह बातें आती हैं, मेरे जहां में आती हैं जहां माननीय भैरों सिंह जी ने जब मैं और निश्चय की स्थिति में था कहा झुंझुनू से चुनाव लड़ो। जब मैं हताश हो गया था कि शायद मंत्री परिषद में मेरा नाम ना आए, उन्होंने बहुत बड़ी ताकत दी पर उसके बाद कोई ऐसा वर्ष नहीं गया जब मैं उनके दर्शन करने नहीं गया हर वर्ष हर महीने और कुछ ना कुछ चीज सीख कर आया पर सबसे बड़ी सीख उनकी पुस्तकों में थी and I can tell you, पुस्तकों के अलावा, राजेंद्र रथोरे साक्षी हैं इस बात के कि किस अखबार में किसके बारे मे क्या छपा है। उनका बहुत बड़ा खजाना था इस बारे में, तकनीकी युग नहीं था उस समय पर उनकी कार्यशैली ऐसी थी मानो यह तकनीकी उनके पास समय से पहले आ गई थी। जब मैं पुस्तकालय को देख रहा था मुझे लगा कि उनके पुत्र ने एक बहुत अच्छा काम किया है। मैंने फोन किया और मैंने कहा सबसे बड़ी श्रद्धांजलि स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत को एक है – और वह है पुस्तकों से प्रेम और पुस्तकों के अलावा शायद ही कोई व्यक्ति स्वतंत्र भारत में रहा होगा जिसका लोगों से इतना मिलना जुलना था और हर व्यक्ति से वह सटीक बात करते थे, किसी भी वर्ग का व्यक्ति हो– मिलापचंद डांडिया जी हैं, जयंत साहब बैठे हैं। पर राजनीति के अजातशत्रु भैरो सिंह शेखावत, ढूंढ लो किसी भी कोने में, दुनिया में प्रदेश में, उनका कोई दुश्मन नहीं मिलेगा। उन्होंने राजनीति में एक बात परिभाषित की, कि राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता है। आज के नेतृत्व को हर दल के अंदर सीखने की आवश्यकता है कि जो उच्चतम मापदंड माननीय भैरों सिंह जी ने स्थापित किया है अभिव्यक्ति का विचार विमर्श का वाद विवाद का मंथन का और वैदिक संस्कृत में कहूं तो अनंतवाद का, किसी भी व्यवस्था में खास तौर से प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए जरूरी है अनंतवाद हो, उन्होंने हर बार देखा है। 5 साल तक राजस्थान की विधानसभा में वह मुख्यमंत्री थे मैं प्रतिपक्ष का विधायक था। उनका दिल प्रतिपक्ष के लिए पसीजता था। प्रतिपक्ष के हर सदस्य को है यह अनुभव था कि मुख्यमंत्री हमारा गार्जियन है। हम कोई बात व्यक्तित्व से कहेंगे, जायज कहेंगे तो उसका निर्णय सकारात्मक रूप से होगा। यह वह वटवृक्ष है जिसके नीचे सब कुछ फूलता ही रहा है। Bhairo Singh Shekhawat has turned out to be a banyan tree contrary to perception की कितने लोगों को उन्होंने नेता बनाया। मुझे बहुत अच्छा लगता है कि जब उपराष्ट्रपति की हैसियत से देश के किसी भी कोने में जाता हूं और कहता हूं कि जो मेरे पास है वह किसी और उपराष्ट्रपति के पास नहीं रहा क्योंकि मेरी शुरुआत में मेरी उंगली पकड़ी, मेरा हाथ पकड़ा, मेरा मार्गदर्शन कर मुझे दर्शन सिखाया मुझे राजनीति का ज्ञान दिया जनता की सेवा के लिए लालायित किया मैं उसी स्थान पर पहुंच गया और आज के दिन सबसे बड़ा अलंकरण मेरे जीवन का क्या हो सकता है तो आज मैंने मेरे महासचिव को कहा कि माननीय भैरो सिंह जी की स्मृति में एक पुस्तकालय का लोकार्पण हो रहा है मैं क्या करूं तो उन्होंने कहा और मैं भी करने जा रहा हूं– संविधान सभा ने जिस संविधान पर दस्तखत किए हिंदी और अंग्रेजी में किए, एक-एक प्रतिलिपि, आधिकारिक प्रतिलिपि मैं इस पुस्तकालय को भेंट कर रहा हूं। इसमें वह सब चित्र हैं जो भारतीय संस्कृति को, 5000 साल की जो हमारी विरासत है, अमूल्य है Our civilisational ethos. वह सब के सब इसमें आदर्श हैं। और हर व्यक्ति ने दस्तख़त किए हैं, हिंदी का मान रखते हुए, क्योंकि भारतीय संविधान में लिखा गया है कि समय के साथ हिंदी का उपयोग बढ़ना चाहिए, अंग्रेजी का कम होना चाहिए पर अंग्रेजी की प्रतिलिपि भी आपको दी जा रही है। उपस्थित महानुभावों, जब संविधान के 75 साल हुए, तो एक बहुत महत्वपूर्ण कार्यक्रम हुआ और उस समय किताबें जारी की गईं। उनकी एक प्रतिलिपि मैं आपको दे रहा हूं। उस समय एक ऐतिहासिक पल भी आया, और एक commemorative coin जारी किया गया। यह पहली बार उस कार्यक्रम के अलावा भेंट किया जा रहा है। माननीय भैरों सिंह जी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खास बात यह है कि जब राज्यसभा में उनका अंतिम दिन था, सभापति की हैसियत से किसने क्या कहा, क्या विचार व्यक्त किए, क्या-क्या अनुभव साझा किये गये। देश के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए हर राजनीतिक दल के नेता के मुख से एक ही बात निकली ‘आप बेमिसाल हैं, आपका कोई मुकाबला नहीं है। आपने सबको एक नजर से देखा है।’ उनके पोते को मैंने वह भी दिया है। पर भारतीय संसद की जो लाइब्रेरी है — खजाना है। उससे इस लाइब्रेरी को हम लिंक करेंगे। माननीय भैरों सिंह शेखावत जी ने जो कुछ कहा, सभापति की हैसियत से वह भी मैंने आपको दे दिया है। Rajya Sabha Secretariat इस बात का ध्यान देगा कि हर परिस्थिति में जो भी व्यक्ति इस पुस्तकालय में आए, वह देख पायेगा सही मायने में माननीय भैरों सिंह जी का क्या योगदान है रहा है देश के लिए, प्रांत के लिए और विश्व के लिए। समय की पाबंदी को ध्यान में रखते हुए, मैं क्षमाप्रार्थी हूं कि मेरे सामने वे लोग बैठे हैं, जिनका नाम मुझे लेना चाहिए था। उन्होंने मुझे राजनीति में बहुत ज्ञान दिया है। भाई जीतराम उस कोने में बैठे हैं। राजेंद्र तो मेरे साथ ही रहे है सदा। उन सबका मैं क्षमाप्रार्थी हूं। और मै यहां से ऊर्जा लेकर जा रहा हूं, एक संकल्प लेकर जा रहा हूं कि जनकल्याण और जनसेवा करने के लिए कोई सीमा नहीं है। हम भारतीय हैं, भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रवाद हमारा धर्म है, राष्ट्र सर्वोपरि है। राष्ट्रीय हित से ऊपर कोई हित नहीं हो सकता न राजनीतिक हो सकता है, न आर्थिक हो सकता है। और हर भारतीय को इस बात का बोध होना चाहिए कि जब राष्ट्र की कोई बात आती है, तो हमें राष्ट्र के अलावा और कुछ नहीं दिखना चाहिए। बहुत-बहुत धन्यवाद।    उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जयपुर, राजस्थान में 'भैरों सिंह शेखावत मेमोरियल लाइब्रेरी' के उद्घाटन पर जनसभा को संबोधित करते हुए।


आतंकवादस्य विरुद्धं भारतस्य नीतिः कथिता निर्णायिका

जयपुरम्, 15 मईमासः (हि.स.)। उपराष्ट्रपतिना जगदीप धनखटेन भारतसेनायाः अद्वितीयशौर्यं वैश्विकप्रभावं च प्रशस्यते। उपराष्ट्रपतिः श्रीजगदीपधनखटः जयपुरनगरे आयोजिते भैरवसिंहशेखावतस्मारकपुस्तकालयस्य उद्घाटनसमारोहे च श्रद्धाञ्जलिसभायां च भाषमाणः आसीत्। तेन भारतीयसेनायाः अद्वितीयं शौर्यम्, अस्य वैश्विकप्रभावं च प्रशंस्य उक्तं यत् भारतदेशेन आतंकवादविरोधे नवं कार्यशैलीं स्वीकृतवती, या अद्य सम्पूर्णस्य जगतः प्रेरणास्रोतः अभवत्।

तेन उक्तं यत् भारतदेशेन सदा शान्तिं प्राथमिकतया स्वीकृतं, परन्तु यदा आवश्यकता जाताऽभवत् तदा सीमायाः अन्तर्गत्वा जैश-ए-मोहम्मद्, लश्कर-ए-तैयबा इत्यादिषु आतङ्कवादिसङ्गठनेषु सफलतापूर्वकं प्रहारः कृतः। एषः उपायः भारतस्य सैन्यशक्तेः रणनीतिकपरिपक्वतायाश्च प्रत्यक्षं द्योतनम् अस्ति।

उपराष्ट्रपतिना उक्तं यत् भारतदेशेन केवलं सैन्यक्षेत्रे न, अपि तु कूटनीतिकेऽपि बह्वः सफलताः प्राप्ताः। ते 'इण्डस् वाटर् ट्रिटी' इत्यस्य सन्दर्भे प्रधानमन्त्रिणः श्रीनरेन्द्रमोदिनः कठोरं दृष्टिकोणं ऐतिहासिकं निर्णयं इत्युक्त्वा अवदन् यावत्पर्यन्तं भारतस्य अनुकूलं स्थितिः न भवति, तावत् तस्य पुनर्विचारः न भविष्यति।

तेन उक्तं यत् भारतदेशः आतंकवादं न कतिपि सहिष्यते, यतः सः केवलं कस्यचित् देशस्य समस्याऽपि नास्ति, अपि तु वैश्विकस्तरस्य चिन्तनीयविषयः अस्ति।

पोखरण-२ परीक्षणस्य स्मरणम्। उपराष्ट्रपतिना पोखरण-२ परमाणुपरीक्षणस्य उल्लेखः कृतः, यस्मिन् पूर्वप्रधानमन्त्री अटलविहारीवाजपेयी, तदैव तस्मिन्काले राजस्थानमुख्यमन्त्रीभूतः भैरवसिंहशेखावत इत्यपि स्मृतौ अन्वगच्छन्। तेन अवदत् यत् मेहमासे राजस्थानप्रदेशे कृतम् एतत् परीक्षणं भारतस्य सामरिकशक्तेः प्रतीकं जातम्।

तेन उक्तं यत् अर्थव्यवस्थायामपि भारतदेशेन महान् उन्नतिः प्राप्ता, अद्य वयं विश्वस्य चतुर्थी महाशक्तिः स्मः, शीघ्रमेव तृतीयः स्थानं प्राप्तुं यत्नं कुर्मः। प्रधानमन्त्रिणा यदा भारतस्य अस्मिता आविष्टा, तदा बिहारप्रदेशस्य भूमौ स्थित्वा जगतः दृढं सन्देशः दत्तः, च तस्मिन् सन्देशे सः पूर्णतः सफलः जातः।

राजस्थानस्य वीरभूमेः वन्दनम्।उपराष्ट्रपतिना राजस्थानस्य वीरभूमिं प्रणम्य महाराणाप्रतापः, महाराजः सूरजमलः च इत्यादीनां महानां योधानां स्मरणं कृत्वा श्रद्धाञ्जलिः अर्पिता, येषां बलिदानात् देशस्य अस्मिता रक्षिता।

तेन उक्तं यत् अहं कदापि न चिन्तितवान् यत् अहमपि तस्मिन् पदे स्थितः भविष्यामि, यत्र पूर्वं भैरवसिंहः विराजमानः आसीत्। स एव मम मार्गदर्शकः आसीत्, स एव मम हस्तं गृहीत्वा मां राजनीतौ प्रवेशितवान्। अहमस्य वटवृक्षस्य केवलं लघु-पत्रम् इव।

पुस्तकालयस्य लोकार्पणम् च संविधानस्मृतिः। अनेन अवसरेण उपराष्ट्रपतिना भैरवसिंहशेखावतस्मृतिपुस्तकालयस्य लोकार्पणं कृतम्। तेन भारतसंविधानस्य हिन्दी-अङ्ग्लभाषायोः अधिकृतप्रतिलिप्यः समर्पिताः। संविधानस्य पंचसप्ततितमवर्षगांठ्याः सन्दर्भे प्रकाशिताः विशेषपुस्तकाः, स्मृतिसिकत्काः च पुस्तकालयाय समर्पिताः।

एतत्पूर्वं स्वर्गीयभैरवसिंहशेखावतस्य जयन्त्याः निमित्ते आयोजिते श्रद्धाञ्जलिसभायां उपराष्ट्रपतिना तस्य महान् योगदानस्य स्मरणं कृत्वा तस्मै भावपूर्णं श्रद्धांजलिः अर्पिता। तेन उक्तं यत् शेखावतः राजनीतौ अजातशत्रुः आसीत्, सामान्यजनानां सत्यप्रतिनिधिः आसीत्।

अन्ते उपराष्ट्रपतिना राष्ट्रवादस्य जनसेवायाश्च भावनां सर्वोपरि स्थापयित्वा उक्तं— “वयं भारतीयाः, राष्ट्र एव अस्माकं परिचयः। राष्ट्रहितात् ऊर्ध्वं किमपि नास्ति।

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हिन्दुस्थान समाचार